बीता ये साल,
छोड़े सब मलाल,
नववर्ष के स्वागत
में आ झूमे गायें|
नंगे है तन,
भूखे है जन,
पर उम्मीद का दिया
कभी बुझने न पाए|
लाखो हो मुश्किलें,
मिल के हम चले,
सपनो का वतन
मेहनत से बनाये|
आ ले ये कसम,
जब तक दम में दम,
भारत का तिरंगा
झुकने न पाए|
हौसला रहे अटल,
हर प्रयास हो सफल,
नव वर्ष में सबको
हार्दिक शुभकामनाएं|
- अमिताभ रंजन झा
Friday, December 31, 2010
नववर्ष का स्वागत
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Sunday, December 19, 2010
God bless Germany!
In the freezing cold,
inside the blanket of snow,
in the arms of nature
moves on Germany!
Sun rises late,
night comes early,
against all odds
never stops Germany!
In the season of summer,
morning arrives too early,
and moon rises too late
but never complains Germany!
The destruction in the world war
could not break courage.
Through hard work and integrity
raised again Germany!
Agony or joy in life
or comfort or challenges,
we must move on
teaches us Germany!
From a factory in America
to a small village in India,
in every corner of the world
you will find technology Germany!
Things happen on the press of button,
Life made easy by science and wisdom,
Abundant development and happiness,
God bless Germany!
People are honest and truthful,
there is no place for crime,
hard work is the identity,
Salute you Germany!
- Amitabh Jha
inside the blanket of snow,
in the arms of nature
moves on Germany!
Sun rises late,
night comes early,
against all odds
never stops Germany!
In the season of summer,
morning arrives too early,
and moon rises too late
but never complains Germany!
The destruction in the world war
could not break courage.
Through hard work and integrity
raised again Germany!
Agony or joy in life
or comfort or challenges,
we must move on
teaches us Germany!
From a factory in America
to a small village in India,
in every corner of the world
you will find technology Germany!
Things happen on the press of button,
Life made easy by science and wisdom,
Abundant development and happiness,
God bless Germany!
People are honest and truthful,
there is no place for crime,
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Salute you Germany!
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सौ सौ नमन जर्मनी
हिमपात एवं भीषण शर्दी यूरोप के जीवन को कितना कठिन बना देती है, अंदाज नहीं था। छह महीने ठण्ड, बर्फ और अन्धकार में डूबे रहने के बाबजूद यहाँ के लोगो ने इतनी तरक्की की है। इनसे सीख मिलती है कि कठिनाइयों का समाधान करो और आगे बढ़ो। एक कविता इनको समर्पित।
करकराती सर्द में,
बर्फीली चादर तले,
प्रकृति की आगोश में,
चलती रहे जर्मनी!
सूरज देर से जगे,
रात जल्द आये तो क्या?
किसी भी हाल में कभी
रूकती नहीं जर्मनी!
गर्मी के मौसम में
जल्द आ टपके सवेरा,
चाँद लेट लतीफ़ तो क्या?
शिकायत करती नहीं जर्मनी!
युद्ध ने था लुटा कभी,
पर हौसला न टूटा कभी!
कड़ी मेहनत और लगन से
फिर से उठी जर्मनी!
जीवन में ग़म हो या ख़ुशी,
आसान हो या मुश्किले,
बढ़ते रहे हम सदा
सिखाती हमे जर्मनी!
अमेरिका के उद्योग में,
भारत के छोटे गाँव में,
दुनिया के कोने कोने में,
दिखती है तकनीक जर्मनी!
बटन दबाके हो हर काम,
ज्ञान-विज्ञान से जीवन आसान,
छाई विकास,ऐश्वर्य और ख़ुशी,
यूँही सदा रहे जर्मनी!
लोग सीधे और सच्चे,
अपराध का निशां नहीं,
मेहनत यहाँ पहचान है
सौ सौ नमन जर्मनी!
- अमिताभ रंजन झा
करकराती सर्द में,
बर्फीली चादर तले,
प्रकृति की आगोश में,
चलती रहे जर्मनी!
सूरज देर से जगे,
रात जल्द आये तो क्या?
किसी भी हाल में कभी
रूकती नहीं जर्मनी!
गर्मी के मौसम में
जल्द आ टपके सवेरा,
चाँद लेट लतीफ़ तो क्या?
शिकायत करती नहीं जर्मनी!
युद्ध ने था लुटा कभी,
पर हौसला न टूटा कभी!
कड़ी मेहनत और लगन से
फिर से उठी जर्मनी!
जीवन में ग़म हो या ख़ुशी,
आसान हो या मुश्किले,
बढ़ते रहे हम सदा
सिखाती हमे जर्मनी!
अमेरिका के उद्योग में,
भारत के छोटे गाँव में,
दुनिया के कोने कोने में,
दिखती है तकनीक जर्मनी!
बटन दबाके हो हर काम,
ज्ञान-विज्ञान से जीवन आसान,
छाई विकास,ऐश्वर्य और ख़ुशी,
यूँही सदा रहे जर्मनी!
लोग सीधे और सच्चे,
अपराध का निशां नहीं,
मेहनत यहाँ पहचान है
सौ सौ नमन जर्मनी!
- अमिताभ रंजन झा
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Saturday, November 20, 2010
हाड़ मांस का पुतला
ऐश्वर्या कैसे एक वर्ष की हो गयी कुछ पता ही नहीं लगा
इन बारह महीनो के अनुभव के आधार मेरे जीवन के पहले साल को व्यक्त करने की कोशिश
*************************
मै जग में जब आया
अपने साथ क्या लाया होगा?
हाड़ मांस का पुतला बस
और अकल जरा न पाया होगा!
मात्रु-गर्भ में नौ महीने
निश्चिन्ता से बिताया होगा!
कभी पलट कभी लात मार कर
माँ को बहुत सताया होगा!
प्रसव-पीड़ा की घड़ी में बेशक
माँ को बहुत रुलाया होगा!
ऑंखें भींच, मुट्ठी बाँध रो
आगमन-बिगुल बजाया होगा!
माँ ने अपने वक्ष लगा के
दुग्धपान मुझे सिखाया होगा!
दिन-रात सीने से लगा के
लोरी गान सुनाया होगा!
पिता ने अपने गले लगा के
आँगन गली घुमाया होगा!
दादा-दादी और सब लोगो ने
जी भर स्नेह लुटाया होगा!
पवन मल-मूत्र, थूक-लाड़ से मैंने
परिजनों को बहुत भिंगाया होगा!
जब मर्जी हो मैं खुद सोया
पर सबको हर रात जगाया होगा!
इसी लिए शायद सबने मुझको
सुई-टिका लगवाया होगा!
बदले में ताप और दर्द से
मैंने सबका चैन चुराया होगा!
तीन माह जब होने को होंगे
पहली किलकारी लगायी होगी!
उसी माह में लगता है
पहली बार बुदबुदाया होगा!
पांच माह में शायद
पहली करवट बदली होगी!
सात माह में चल घुटनों पर
सबको नाच नचाया होगा!
नवमे माह में दांत काट सभीको
नानी याद दिलाया होगा!
१२ माह में भाग भाग कर
घर को सर पे उठाया होगा!
मै जग में जब आया
अपने साथ क्या लाया होगा?
हाड़ मांस का पुतला बस
और अकल जरा न पाया होगा!
- अमिताभ रंजन झा
Poems dedicated to mother:
माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना
माँ तू याद आती है
आंतकवादी की माँ
इन बारह महीनो के अनुभव के आधार मेरे जीवन के पहले साल को व्यक्त करने की कोशिश
*************************
मै जग में जब आया
अपने साथ क्या लाया होगा?
हाड़ मांस का पुतला बस
और अकल जरा न पाया होगा!
मात्रु-गर्भ में नौ महीने
निश्चिन्ता से बिताया होगा!
कभी पलट कभी लात मार कर
माँ को बहुत सताया होगा!
प्रसव-पीड़ा की घड़ी में बेशक
माँ को बहुत रुलाया होगा!
ऑंखें भींच, मुट्ठी बाँध रो
आगमन-बिगुल बजाया होगा!
माँ ने अपने वक्ष लगा के
दुग्धपान मुझे सिखाया होगा!
दिन-रात सीने से लगा के
लोरी गान सुनाया होगा!
पिता ने अपने गले लगा के
आँगन गली घुमाया होगा!
दादा-दादी और सब लोगो ने
जी भर स्नेह लुटाया होगा!
पवन मल-मूत्र, थूक-लाड़ से मैंने
परिजनों को बहुत भिंगाया होगा!
जब मर्जी हो मैं खुद सोया
पर सबको हर रात जगाया होगा!
इसी लिए शायद सबने मुझको
सुई-टिका लगवाया होगा!
बदले में ताप और दर्द से
मैंने सबका चैन चुराया होगा!
तीन माह जब होने को होंगे
पहली किलकारी लगायी होगी!
उसी माह में लगता है
पहली बार बुदबुदाया होगा!
पांच माह में शायद
पहली करवट बदली होगी!
सात माह में चल घुटनों पर
सबको नाच नचाया होगा!
नवमे माह में दांत काट सभीको
नानी याद दिलाया होगा!
१२ माह में भाग भाग कर
घर को सर पे उठाया होगा!
मै जग में जब आया
अपने साथ क्या लाया होगा?
हाड़ मांस का पुतला बस
और अकल जरा न पाया होगा!
- अमिताभ रंजन झा
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माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना
माँ तू याद आती है
आंतकवादी की माँ
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Friday, November 5, 2010
Happy deepavali! दीपावली की हार्दिक शुभकामना!
Dear friends,
Happy deepavali! दीपावली की हार्दिक शुभकामना!
May mother Lakshmi bless all with abundant of wisdom, health, wealth and harmony!
All we need is hope, courage and action to to make all our wish come true!
God bless Bihar!
God bless India!
God bless the world!
Warm regards,
Amitabh Jha
BRF
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Tuesday, October 19, 2010
चाँद बेदाग
सुनहरी आग तू
चाँद बेदाग तू
सफ़ेद मेहताब तू
इश्क बेहिसाब तू|
उभरता शवाब तू
हुस्न लाजवाब तू
हसीन रुवाब तू
नशीली शराब तू|
एक पाक किताब तू
सुबह का आफताब तू
वजह ए बेताब तू
मेरी मन्नत का जवाब तू|
दुनिया के लिए ऐतराज तू
मेरी जन्नत का रिवाज तू
ज़माने के जले पर तेजाब तू
पर मेरे हर मर्ज का इलाज तू|
मेरी गुलाब तू
मेरी नाज तू
मेरी हमनवाज़ तू
मेरी हमराज तू|
मेरे आँखों का हिजाब तू
मेरे होठों का रियाज तू
मेरी दिल की आवाज तू
मेरी हसीन ख्वाब तू|
- अमिताभ रंजन झा
चाँद बेदाग तू
सफ़ेद मेहताब तू
इश्क बेहिसाब तू|
उभरता शवाब तू
हुस्न लाजवाब तू
हसीन रुवाब तू
नशीली शराब तू|
एक पाक किताब तू
सुबह का आफताब तू
वजह ए बेताब तू
मेरी मन्नत का जवाब तू|
दुनिया के लिए ऐतराज तू
मेरी जन्नत का रिवाज तू
ज़माने के जले पर तेजाब तू
पर मेरे हर मर्ज का इलाज तू|
मेरी गुलाब तू
मेरी नाज तू
मेरी हमनवाज़ तू
मेरी हमराज तू|
मेरे आँखों का हिजाब तू
मेरे होठों का रियाज तू
मेरी दिल की आवाज तू
मेरी हसीन ख्वाब तू|
- अमिताभ रंजन झा
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Saturday, October 9, 2010
आसमान के पंछी चंचल
India is on fast track of success and the credit goes to the hard work of the infinite daughters and sons of the soil. This poem is dedicated to each and every Indian!
ओढ़ने को ले एक कम्बल
खाने को कुछ फुल और फल|
आगे बढते रहते हर पल
बदल रहे वो भारत की शकल||
जीवन उनका संघर्ष का जंगल
पग पग रखते संभल संभल|
जब ये दिखाए ताकत और अकल
दुनिया झाकें अगल और बगल||
जैसे जैसे होते वो सफल
होता जाता ऊँचा मनोबल|
बढ़ता जाता उनका आत्मबल
जैसे बहती झरना कलकल||
और कभी जो होते विफल
न मन को होने देते दुर्बल|
यदि कभी जो होते विकल
नहीं गिराते आँखों से जल||
नींद से जब होता तन बोझल
और थकान जब रहता मसल|
जहा कोई हो घना सा पीपल
वही लेट जाते दल बदल||
कंधे पर ले भारत का हल
पीते जाते घातक हलाहल|
नहीं सोचते कल आज कल
रोपते जाते अनगिनत फसल||
आसमान के पंछी चंचल
उड़ते ऊँचा चीर के बादल|
भरते जाते मातृभूमि का आँचल
करते जाते जन्भूमि का मंगल||
- अमिताभ रंजन झा
ओढ़ने को ले एक कम्बल
खाने को कुछ फुल और फल|
आगे बढते रहते हर पल
बदल रहे वो भारत की शकल||
जीवन उनका संघर्ष का जंगल
पग पग रखते संभल संभल|
जब ये दिखाए ताकत और अकल
दुनिया झाकें अगल और बगल||
जैसे जैसे होते वो सफल
होता जाता ऊँचा मनोबल|
बढ़ता जाता उनका आत्मबल
जैसे बहती झरना कलकल||
और कभी जो होते विफल
न मन को होने देते दुर्बल|
यदि कभी जो होते विकल
नहीं गिराते आँखों से जल||
नींद से जब होता तन बोझल
और थकान जब रहता मसल|
जहा कोई हो घना सा पीपल
वही लेट जाते दल बदल||
कंधे पर ले भारत का हल
पीते जाते घातक हलाहल|
नहीं सोचते कल आज कल
रोपते जाते अनगिनत फसल||
आसमान के पंछी चंचल
उड़ते ऊँचा चीर के बादल|
भरते जाते मातृभूमि का आँचल
करते जाते जन्भूमि का मंगल||
- अमिताभ रंजन झा
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Thursday, September 30, 2010
आत्मरक्षितो परमोधर्मः
Hinduism says:
आत्मरक्षितो परमोधर्मः| - Self-protection is duty!
The question is "What is SELF"?
Here is the answer.
Hinduism also says:
वसुधैव कुटुम्बकम| - All living on Earth are friends!
The scope of SELF can be as big as your heart and your thoughts!
Self-protection is Compulsion,
all living on Earth are relation|
Let's have self determination
to protect our nation||
Protect your self
Protect your family
Protect your friends
Protect you loved ones|
Protect your vicinity
Protect your common property
Protect your city
Protect serene humanity|
Protect your country
Protect your state
Protect your Earth
Protect your Universe|
- Amitabh Jha
Be a SANE INSAN not an INSANE SATAN!
God bless India|
आत्मरक्षितो परमोधर्मः| - Self-protection is duty!
The question is "What is SELF"?
Here is the answer.
Hinduism also says:
वसुधैव कुटुम्बकम| - All living on Earth are friends!
The scope of SELF can be as big as your heart and your thoughts!
Self-protection is Compulsion,
all living on Earth are relation|
Let's have self determination
to protect our nation||
Protect your self
Protect your family
Protect your friends
Protect you loved ones|
Protect your vicinity
Protect your common property
Protect your city
Protect serene humanity|
Protect your country
Protect your state
Protect your Earth
Protect your Universe|
- Amitabh Jha
Be a SANE INSAN not an INSANE SATAN!
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Sunday, September 26, 2010
बैजू और भोलू
आज मैं आपको कहानी सुनाऊंगा बैजू और भोलू की|
इससे पहले मैं ये स्पष्ट कर दूं कि कहानी के सारे पात्र काल्पनिक है|
___________
बैजू और भोलू
___________
एक समय की बात है, एक गांव था, हरा-भरा और खुशहाल| उस गांव में दो परिवार पास-पास रहते थे| दोनों परिवार में मधुर सम्बन्ध थे, आना-जाना था, खान-पीन था, सुख-दुःख का साथ था| परिवार के बुजुर्ग दादाजी लोग साथ गप्पे लड़ाते, शतरंज खेलते| दादियाँ सवेरे साथ-साथ पूजा के फूल तोड़ने जाती, शाम आरती के गीत साथ-साथ गातीं| पिता साथ खेत में काम करने जाते, माँ साथ मंदिर जातीं|
संयोग या विडम्बना कहिये, दोनों परिवार अगले पीढ़ी के संतान का इन्तजार बरसों से कर रहे थे| वे मन्नते मांगते, फरियाद करते, पर पूरी न होती| आखिरकार चौदह साल कांवर लेकर, वैद्यनाथ बाबा के दर्शन के बाद दोनों परिवार की मन्नत पूरी हो ही गयी| बाबा की कृपा से दोनों परिवार को पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुयी| संयोग देखिये, एक ही दिन, एक ही घडी में| एक सेकंड का भी अंतर नहीं| परिवारों ने दोनों बच्चो का नाम बाबा के नाम पर रखा, वैद्यनाथ सिंह (बैजू) और भोलानाथ सिंह (भोलू)| एक बहुत ही प्रसिद्ध ज्योतिषराज से बच्चो की जन्मकुंडली बनवाई गयी जिन्होंने बताया की दोनों बच्चे जगत में बहुत नाम कमाएंगे|
बच्चे बड़े होने लगे| खाते-पीते घर से थे सो अच्छी परवरिश होती रही, प्रभु के कृपा से किसी चीज़ की कमी नहीं हुयी| समय बदला, जैसा कि पड़ोसियों में होता है, दोनों परिवार अपने बच्चे को अच्छा साबित करने में पीछे नहीं छूटते जिसका असर बच्चों पर भी होता गया | दोनों बच्चे साथ खेलते, कभी लड़ भी जाते| जब भी कोई खेल या प्रतियोगिता या इम्तिहान की बात होती, बैजू फटाक से भोलू को कहता, माँ का दूध पिया है तो आ जा मैदान में| दोनों अपनी जान लगा देते किन्तु जीत हमेशा बैजू सिंह की ही होती| ये सिलसिला उनके से बचपन से शुरू हुआ और चलता रहा| बैजू हमेशा जीतता रहा, अव्वल आता रहा| भोलू हमेशा दुसरे नंबर पे रहता और इसे ही अपनी नियति मान लेता| दोनों बड़े होते गए|
उसी समय महापराक्रमी दारा सिंह जी का उदय हुआ और दोनों बच्चे ने उनसे प्रभावित होके कुश्ती को अपना धर्म बना लिया| दोनों साथ लड़ते, अभ्यास करते| दोनों ने काफी प्रगति की| विद्यालय के स्तर से शुरुवात हुयी, फिर गांव, शहर, जिला, राज्य, और राष्ट्रीय स्तर पर जा पहुचे| किन्तु भोलू कभी बैजू से न जीत पाया| और एक दिन आया की दोनों का एशियन गेम्स के लिए चयन हो गया| दोनों फ़ाइनल में भी पहुच गए| बैजू ने वहा भी भोलू को माँ के दूध के हवाला दिया| दोनों जोड़ से लड़े| जैसा की होता आया था, जीत बैजू की ही हुयी| सौ कड़ोड़ की आबादी वाले देश के लिए गर्व की बात थी, स्वर्ण और रजत दोनों हासिल हुए| लोगों ने वापसी पे उनका पुरजोर स्वागत किया| सरकार, और निजी कंपनियों ने उन्हें इनामों से मालामाल कर दिया| दोनों मायानगरी में जुहू के पास एक आलीशान अपार्टमेन्ट में आमने सामने के घर में आ गए| अपार्टमेन्ट का माहौल मोहक, मादक और आकर्षक था, बोलीवुड के बहुत सारे अभिनेता, अभिनेत्री, नर्तक, नर्तकी, मॉडल इसकी चहल पहल को और बढ़ाते|
दो साल बाद ओलंपिक गेम्स हों वाले थे| बैजू ने घर में ही अखाडा और जिम बना लिया था| दिन रात मेहनत करता, शायद ही कभी अपार्टमेन्ट से बाहर निकलता| भोलू पड़ोस में एक आधुनिक जिम में जाता| वही उसकी मित्रता बॉलीवुड की उभरती हुयी अभिनेत्री से हो गयी| दोनों अक्सर जिम में मिलते, फिर धीरे धीरे बाहर भी मिलने लगे| एक दिन दोनों ने शादी कर ली और ख़ुशी ख़ुशी रहने लगे| कुछ दिन बाद भगवन ने उन्हें एक औलाद भी दे दी|
बैजू और भोलू दोनों ओलंपिक के लिए जी तोड़ मेहनत करते रहे और एक दिन आया की दोनों का चयन भी हो गया| ओलंपिक में दोनों ने बड़े-बड़े पहलवानों को चुनौती दी, धुल चटाया और, खूब लड़ा और सेमी फ़ाइनल तक पहुँच गए| बैजू दुसरे स्थान पर था और भोलू चौथे स्थान पर| सौ कड़ोड़ की आबादी वाले देश के लिए ख़ुशी का पल था और लोग स्वर्ण और रजत पदक की कल्पना से अभिभूत थे| सेमी फ़ाइनल में प्रतिद्वंद्वी उनसे भारी पड़े और कड़े मुकाबले में दोनों पराजित हो गए| देश के लिए गम का माहौल था तो संतोष भी की सौ कड़ोड़ की आबादी वाले देश के लिए कम से कम एक कांस्य पदक पक्की है| अब कांस्य पदक के लिए चिर प्रतिद्वंधियों को आपस में लड़ना था|
मैच शुरू होने को था, दोनों पहलवान रिंग में थे| बैजू ने शरारत से फिर भोलू की कान में कहा, माँ का दूध पिया है तो आ जा मैदान में| मैच शुरू हुआ, पहला राउण्ड, दूसरा, तीसरा, हर राउण्ड में भीषण मुकाबला होता रहा| बैजू चकित था, उसे भोलूसे कभी इतना प्रतिरोध नहीं मिला था| दूरदर्शन पर मैच देख रहे बैजू के परिवार वाले और प्रशंसक विस्मित थे तो भोलू के परिवार वाले और प्रशंसक अचंभित| और अब अंतिम राउण्ड आ चुका था| मैच शुरू हुआ, कड़ा मुकाबला, परम संघर्ष, पुरजोर प्रयास| दोनों एक दुसरे को पछाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे, अंतिम कुछ पल बाकी थे, दोनों बेदम हो चुके थे और जमीन पर थे, उठ नहीं पा रहे थे , और अंतिम गिनती चल रही थी| फिर ये क्या हुआ? भोलू ने हिम्मत बटोर कर बैजू की तरफ मुंह किया, उस पर कूदा और उस को चित्त कर दिया| बैजू के परिवार वाले और प्रशंसक की आँखों में शोक के आंशु थे तो भोलू के परिवार वाले और प्रशंसक की आँखों में हर्ष के| ऐसा कभी हुआ न था, अनहोनी हुई, भोलू विजय हुआ|
बैजू टूट गया, शोक में डूबा रहा| पर बैजू मन का मजबूत था, मन में ठान लिया, अगले प्रतियोगता में देख लेगा| और दुनिया को भूल कर फिर से कड़ी मेहनत में लग गया| फिर कॉमन वेल्थ गेम्स हुए, भाग्य देखिये यहाँ भी बैजू भोलू से पराजित हो गया| अब ये सिलसिला चलता रहा, समय का पहिया घूमता रहा, वो कभी भोलू से जीत न पाया| एक समय आया दोनों रिटायर हो गए|
बैजू ने शादी कभी की नहीं, बिलकुल अकेला रहा, और हार का संताप| बैजू बीमार रहने लगा| एक दिन डॉक्टरों ने जवाब दे दिया| बैजू ने भोलू को बुलाया और उस से पूछा, आखिर क्या हुआ कि उस ओलंपिक मुकाबला के बाद वो कभी उस से जीत न पाया? भोलू मुस्कुराया और उसके कान में कुछ फुसफुसाया| बैजू चकित रह गया, उसकी आँखे खुली रह गयी और उस के कानों में भोला की आवाज गूंजने लगी "बैजू तुने सिर्फ माँ का दूध पिया| तुमने सिर्फ खेल पर ध्यान लगाया और अपनी दूसरी जरूरतों को कभी पूरा नहीं किया| जीवन में सफल होने के लिए व्यक्तिगत विकास, स्वास्थय, सम्बन्ध, मित्र, मनोरंजन इत्यादि भी अवश्यक हैं| जब जीवन में संघर्ष बढ़ता जाता है तो ये मनोबल बढ़ाने में, तनाव दूर करने में काम आते है|" पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत| उसने वही प्राण त्याग दिए|
- अमिताभ रंजन झा
इससे पहले मैं ये स्पष्ट कर दूं कि कहानी के सारे पात्र काल्पनिक है|
___________
बैजू और भोलू
___________
एक समय की बात है, एक गांव था, हरा-भरा और खुशहाल| उस गांव में दो परिवार पास-पास रहते थे| दोनों परिवार में मधुर सम्बन्ध थे, आना-जाना था, खान-पीन था, सुख-दुःख का साथ था| परिवार के बुजुर्ग दादाजी लोग साथ गप्पे लड़ाते, शतरंज खेलते| दादियाँ सवेरे साथ-साथ पूजा के फूल तोड़ने जाती, शाम आरती के गीत साथ-साथ गातीं| पिता साथ खेत में काम करने जाते, माँ साथ मंदिर जातीं|
संयोग या विडम्बना कहिये, दोनों परिवार अगले पीढ़ी के संतान का इन्तजार बरसों से कर रहे थे| वे मन्नते मांगते, फरियाद करते, पर पूरी न होती| आखिरकार चौदह साल कांवर लेकर, वैद्यनाथ बाबा के दर्शन के बाद दोनों परिवार की मन्नत पूरी हो ही गयी| बाबा की कृपा से दोनों परिवार को पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुयी| संयोग देखिये, एक ही दिन, एक ही घडी में| एक सेकंड का भी अंतर नहीं| परिवारों ने दोनों बच्चो का नाम बाबा के नाम पर रखा, वैद्यनाथ सिंह (बैजू) और भोलानाथ सिंह (भोलू)| एक बहुत ही प्रसिद्ध ज्योतिषराज से बच्चो की जन्मकुंडली बनवाई गयी जिन्होंने बताया की दोनों बच्चे जगत में बहुत नाम कमाएंगे|
बच्चे बड़े होने लगे| खाते-पीते घर से थे सो अच्छी परवरिश होती रही, प्रभु के कृपा से किसी चीज़ की कमी नहीं हुयी| समय बदला, जैसा कि पड़ोसियों में होता है, दोनों परिवार अपने बच्चे को अच्छा साबित करने में पीछे नहीं छूटते जिसका असर बच्चों पर भी होता गया | दोनों बच्चे साथ खेलते, कभी लड़ भी जाते| जब भी कोई खेल या प्रतियोगिता या इम्तिहान की बात होती, बैजू फटाक से भोलू को कहता, माँ का दूध पिया है तो आ जा मैदान में| दोनों अपनी जान लगा देते किन्तु जीत हमेशा बैजू सिंह की ही होती| ये सिलसिला उनके से बचपन से शुरू हुआ और चलता रहा| बैजू हमेशा जीतता रहा, अव्वल आता रहा| भोलू हमेशा दुसरे नंबर पे रहता और इसे ही अपनी नियति मान लेता| दोनों बड़े होते गए|
उसी समय महापराक्रमी दारा सिंह जी का उदय हुआ और दोनों बच्चे ने उनसे प्रभावित होके कुश्ती को अपना धर्म बना लिया| दोनों साथ लड़ते, अभ्यास करते| दोनों ने काफी प्रगति की| विद्यालय के स्तर से शुरुवात हुयी, फिर गांव, शहर, जिला, राज्य, और राष्ट्रीय स्तर पर जा पहुचे| किन्तु भोलू कभी बैजू से न जीत पाया| और एक दिन आया की दोनों का एशियन गेम्स के लिए चयन हो गया| दोनों फ़ाइनल में भी पहुच गए| बैजू ने वहा भी भोलू को माँ के दूध के हवाला दिया| दोनों जोड़ से लड़े| जैसा की होता आया था, जीत बैजू की ही हुयी| सौ कड़ोड़ की आबादी वाले देश के लिए गर्व की बात थी, स्वर्ण और रजत दोनों हासिल हुए| लोगों ने वापसी पे उनका पुरजोर स्वागत किया| सरकार, और निजी कंपनियों ने उन्हें इनामों से मालामाल कर दिया| दोनों मायानगरी में जुहू के पास एक आलीशान अपार्टमेन्ट में आमने सामने के घर में आ गए| अपार्टमेन्ट का माहौल मोहक, मादक और आकर्षक था, बोलीवुड के बहुत सारे अभिनेता, अभिनेत्री, नर्तक, नर्तकी, मॉडल इसकी चहल पहल को और बढ़ाते|
दो साल बाद ओलंपिक गेम्स हों वाले थे| बैजू ने घर में ही अखाडा और जिम बना लिया था| दिन रात मेहनत करता, शायद ही कभी अपार्टमेन्ट से बाहर निकलता| भोलू पड़ोस में एक आधुनिक जिम में जाता| वही उसकी मित्रता बॉलीवुड की उभरती हुयी अभिनेत्री से हो गयी| दोनों अक्सर जिम में मिलते, फिर धीरे धीरे बाहर भी मिलने लगे| एक दिन दोनों ने शादी कर ली और ख़ुशी ख़ुशी रहने लगे| कुछ दिन बाद भगवन ने उन्हें एक औलाद भी दे दी|
बैजू और भोलू दोनों ओलंपिक के लिए जी तोड़ मेहनत करते रहे और एक दिन आया की दोनों का चयन भी हो गया| ओलंपिक में दोनों ने बड़े-बड़े पहलवानों को चुनौती दी, धुल चटाया और, खूब लड़ा और सेमी फ़ाइनल तक पहुँच गए| बैजू दुसरे स्थान पर था और भोलू चौथे स्थान पर| सौ कड़ोड़ की आबादी वाले देश के लिए ख़ुशी का पल था और लोग स्वर्ण और रजत पदक की कल्पना से अभिभूत थे| सेमी फ़ाइनल में प्रतिद्वंद्वी उनसे भारी पड़े और कड़े मुकाबले में दोनों पराजित हो गए| देश के लिए गम का माहौल था तो संतोष भी की सौ कड़ोड़ की आबादी वाले देश के लिए कम से कम एक कांस्य पदक पक्की है| अब कांस्य पदक के लिए चिर प्रतिद्वंधियों को आपस में लड़ना था|
मैच शुरू होने को था, दोनों पहलवान रिंग में थे| बैजू ने शरारत से फिर भोलू की कान में कहा, माँ का दूध पिया है तो आ जा मैदान में| मैच शुरू हुआ, पहला राउण्ड, दूसरा, तीसरा, हर राउण्ड में भीषण मुकाबला होता रहा| बैजू चकित था, उसे भोलूसे कभी इतना प्रतिरोध नहीं मिला था| दूरदर्शन पर मैच देख रहे बैजू के परिवार वाले और प्रशंसक विस्मित थे तो भोलू के परिवार वाले और प्रशंसक अचंभित| और अब अंतिम राउण्ड आ चुका था| मैच शुरू हुआ, कड़ा मुकाबला, परम संघर्ष, पुरजोर प्रयास| दोनों एक दुसरे को पछाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे, अंतिम कुछ पल बाकी थे, दोनों बेदम हो चुके थे और जमीन पर थे, उठ नहीं पा रहे थे , और अंतिम गिनती चल रही थी| फिर ये क्या हुआ? भोलू ने हिम्मत बटोर कर बैजू की तरफ मुंह किया, उस पर कूदा और उस को चित्त कर दिया| बैजू के परिवार वाले और प्रशंसक की आँखों में शोक के आंशु थे तो भोलू के परिवार वाले और प्रशंसक की आँखों में हर्ष के| ऐसा कभी हुआ न था, अनहोनी हुई, भोलू विजय हुआ|
बैजू टूट गया, शोक में डूबा रहा| पर बैजू मन का मजबूत था, मन में ठान लिया, अगले प्रतियोगता में देख लेगा| और दुनिया को भूल कर फिर से कड़ी मेहनत में लग गया| फिर कॉमन वेल्थ गेम्स हुए, भाग्य देखिये यहाँ भी बैजू भोलू से पराजित हो गया| अब ये सिलसिला चलता रहा, समय का पहिया घूमता रहा, वो कभी भोलू से जीत न पाया| एक समय आया दोनों रिटायर हो गए|
बैजू ने शादी कभी की नहीं, बिलकुल अकेला रहा, और हार का संताप| बैजू बीमार रहने लगा| एक दिन डॉक्टरों ने जवाब दे दिया| बैजू ने भोलू को बुलाया और उस से पूछा, आखिर क्या हुआ कि उस ओलंपिक मुकाबला के बाद वो कभी उस से जीत न पाया? भोलू मुस्कुराया और उसके कान में कुछ फुसफुसाया| बैजू चकित रह गया, उसकी आँखे खुली रह गयी और उस के कानों में भोला की आवाज गूंजने लगी "बैजू तुने सिर्फ माँ का दूध पिया| तुमने सिर्फ खेल पर ध्यान लगाया और अपनी दूसरी जरूरतों को कभी पूरा नहीं किया| जीवन में सफल होने के लिए व्यक्तिगत विकास, स्वास्थय, सम्बन्ध, मित्र, मनोरंजन इत्यादि भी अवश्यक हैं| जब जीवन में संघर्ष बढ़ता जाता है तो ये मनोबल बढ़ाने में, तनाव दूर करने में काम आते है|" पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत| उसने वही प्राण त्याग दिए|
- अमिताभ रंजन झा
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Sunday, September 5, 2010
नेक इमरान
Setting a highest example before communalists in the society, 19-year-old Imran sacrificed his life while saving two Hindu boys in Ranipur village of Siwan district at Ranipur in Bihar on September 1, 2010.
http://twocircles.net/2010sep05/19yrold_imran_sacrificed_his_life_save_two_hindu_boys.html
A poem dedicated to brave Imran.
ऐ दोस्त मुझे बता
कौन है महान,
ऊपर बैठा वो मालिक
या नेक इमरान?
उसने तो बचायी
दो मासूमो की जान,
क्यों उसको न बचा पाया
कहते जिसे हम रहमान?
अब जब भी आये
माह पाक रमजान,
याद करे ये क़ुरबानी
हर हिन्दू और मुसलमान|
- अमिताभ रंजन झा
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A poem dedicated to brave Imran.
ऐ दोस्त मुझे बता
कौन है महान,
ऊपर बैठा वो मालिक
या नेक इमरान?
उसने तो बचायी
दो मासूमो की जान,
क्यों उसको न बचा पाया
कहते जिसे हम रहमान?
अब जब भी आये
माह पाक रमजान,
याद करे ये क़ुरबानी
हर हिन्दू और मुसलमान|
- अमिताभ रंजन झा
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Thursday, August 26, 2010
माँ बिहार की करुण पुकार
वस्त्र जो तन पे ओढ़े हैं इन्होने
वो कोई नहीं है मच्छरदानी|
वो हैं इनके मैले चिथड़े कपड़े
जो कहते हैं इनकी कहानी||
भारत माँ की कभी ये थीं दुलारी
लोग कहते थे चीनी की कटोरी|
किस्मत ने ऐसी बदली मारी
भाग्यवान से हुयी यें दुखियारी||
बुद्ध, महावीर, अशोक जैसे माणिक्य
गुरु गोविन्द सिंह, आर्यभट, चाणक्य|
जन्मे बिहार ने अनगिनत संतान
जिनहो ने दुनिया में बढ़ाया मान||
जहाँ में उजाला इनके चिराग से
जल रही यें आज घर के ही आग से|
अपनों से ही लुटती रही अब
पीछे सबसे छुटती रही अब||
बरसों से यें है आस लगाये
चलो मिलके हम कदम बढ़ाये|
कब तक हो यें इनसे सहन
आओ करे अब इनपर रहम||
सुने माँ बिहार की करुण पुकार
आ मिल के करे इनका उद्धार|
वापस लाये इनका मान
तभी बढ़े हमारा सम्मान||
- अमिताभ रंजन झा
वो कोई नहीं है मच्छरदानी|
वो हैं इनके मैले चिथड़े कपड़े
जो कहते हैं इनकी कहानी||
भारत माँ की कभी ये थीं दुलारी
लोग कहते थे चीनी की कटोरी|
किस्मत ने ऐसी बदली मारी
भाग्यवान से हुयी यें दुखियारी||
बुद्ध, महावीर, अशोक जैसे माणिक्य
गुरु गोविन्द सिंह, आर्यभट, चाणक्य|
जन्मे बिहार ने अनगिनत संतान
जिनहो ने दुनिया में बढ़ाया मान||
जहाँ में उजाला इनके चिराग से
जल रही यें आज घर के ही आग से|
अपनों से ही लुटती रही अब
पीछे सबसे छुटती रही अब||
बरसों से यें है आस लगाये
चलो मिलके हम कदम बढ़ाये|
कब तक हो यें इनसे सहन
आओ करे अब इनपर रहम||
सुने माँ बिहार की करुण पुकार
आ मिल के करे इनका उद्धार|
वापस लाये इनका मान
तभी बढ़े हमारा सम्मान||
- अमिताभ रंजन झा
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Wednesday, August 25, 2010
Happy Rakhi!
सुन ओ मेरी प्यारी बहन
राखी आज बंधवाऊंगा|
रक्षा का दू मै वचन
आजीवन निभाऊंगा||
यदि बहन नहीं है तो बना लो :)
क्या हुआ जो तू नहीं बहन
राखी आज बंधवाऊंगा|
रक्षा का दू मै वचन
आजीवन निभाऊंगा||
- अमिताभ रंजन झा
राखी आज बंधवाऊंगा|
रक्षा का दू मै वचन
आजीवन निभाऊंगा||
यदि बहन नहीं है तो बना लो :)
क्या हुआ जो तू नहीं बहन
राखी आज बंधवाऊंगा|
रक्षा का दू मै वचन
आजीवन निभाऊंगा||
- अमिताभ रंजन झा
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Saturday, August 14, 2010
जशन-ए-आज़ादी
जशन-ए-आज़ादी पे
है आज हसरत|
हो सख्त मेहनत
और मशक्कत||
गरीबी बदहाली को
दे जरा फुर्सत|
और अम्नोखुशहाली की
हो सदा बरकत||
ए मालिक कर इनायत,
बक्श हमें नेक किस्मत|
यार परिवार के संग मिल
तबियत से हो दावत||
नफरत और कड़वाहट हो
हमेशा के लिए रुखसत|
और वतन-ए-मोहब्बत में
शहादत की हो हिम्मत||
पड़ोसी के लिए थोड़ी
अक्ल की है चाहत|
दें दोस्ती का दस्तक,
प्यार की आहट||
काश वो बदले
अपनी बुरी फितरत|
और सियासत-ए-अमन की
करे इज्ज़त||
करे वो कसरत,
रखे लिहाज़-ए-इंसानियत|
छोड़े उसूल-ए-हुकूमत,
जो ढाए मासूमो पे क़यामत||
बंद करे वो उलटी-सीधी
हरकते निहायत|
वरना एक दिन लोग
करेंगे बगावत||
पर याद ये
बात रहे हजरत|
न हो कोई
गुस्ताख हिमाकत||
गर लड़ाई की
कभी हुई जुर्रत|
खाक होगी
बेशक तेरी किस्मत||
अमन पसंद हैं हम,
करे इसकी वकालत|
लड़ाई नहीं रही
कभी हमारी चाहत||
सबके लिए हो
पैगाम-ए-सदाकत|
जशन-ए-आज़ादी पे
है आज ये हसरत||
- अमिताभ रंजन झा
है आज हसरत|
हो सख्त मेहनत
और मशक्कत||
गरीबी बदहाली को
दे जरा फुर्सत|
और अम्नोखुशहाली की
हो सदा बरकत||
ए मालिक कर इनायत,
बक्श हमें नेक किस्मत|
यार परिवार के संग मिल
तबियत से हो दावत||
नफरत और कड़वाहट हो
हमेशा के लिए रुखसत|
और वतन-ए-मोहब्बत में
शहादत की हो हिम्मत||
पड़ोसी के लिए थोड़ी
अक्ल की है चाहत|
दें दोस्ती का दस्तक,
प्यार की आहट||
काश वो बदले
अपनी बुरी फितरत|
और सियासत-ए-अमन की
करे इज्ज़त||
करे वो कसरत,
रखे लिहाज़-ए-इंसानियत|
छोड़े उसूल-ए-हुकूमत,
जो ढाए मासूमो पे क़यामत||
बंद करे वो उलटी-सीधी
हरकते निहायत|
वरना एक दिन लोग
करेंगे बगावत||
पर याद ये
बात रहे हजरत|
न हो कोई
गुस्ताख हिमाकत||
गर लड़ाई की
कभी हुई जुर्रत|
खाक होगी
बेशक तेरी किस्मत||
अमन पसंद हैं हम,
करे इसकी वकालत|
लड़ाई नहीं रही
कभी हमारी चाहत||
सबके लिए हो
पैगाम-ए-सदाकत|
जशन-ए-आज़ादी पे
है आज ये हसरत||
- अमिताभ रंजन झा
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Friday, August 13, 2010
माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना
नौ महीने उदर में
समाये रक्खा,
लहू से सींचा नाभी से
लगाये रक्खा,
अपनी धड़कन से दिल मेरा
जगाये रक्खा,
मीठे सपनो में मुझको
बसाये रक्खा|
इतना छोटा हूँ कि
हथेली में समा जाता,
अंगूठा चूसू बस और
कुछ भी नहीं आता,
छोड़ो हँसना अभी तो मैं
रो भी नहीं पाता,
माँ आँखे खोलू तो
जी मेरा घबराता|
तेरी गोदी में सीखूंगा
मैं खिलखिलाकर हँसना,
ऊँगली तेरी पकड़ कर
एक दिन है चलना,
माँ मुझ पे कभी भी
नाराज ना होना,
गिर भी जाऊ
तो सिखाना संभलना|
अपनी आँचल में मुझको
छुपाये रखना,
सर अपना मेरे माथे पे
टिकाये रखना,
दुनिया की निगाहों से
बचाए रखना,
माँ मुझको कलेजे से
लगाये रखना|
मेरे बालों में उंगलिया
फिराते रहना,
मेरे चेहरे को हाथों से
थपथपाते रहना,
मेरी आँखों पे चुम्बन
लुटाते रहना,
गालों से गालों को
सटाये रखना|
माँ मुझको आँचल में
छुपाये रखना|
माँ मुझको कलेजे से
लगाये रखना||
- अमिताभ रंजन झा
Poems dedicated to mother:
माँ तू याद आती है
आंतकवादी की माँ
हाड़ मांस का पुतला
समाये रक्खा,
लहू से सींचा नाभी से
लगाये रक्खा,
अपनी धड़कन से दिल मेरा
जगाये रक्खा,
मीठे सपनो में मुझको
बसाये रक्खा|
इतना छोटा हूँ कि
हथेली में समा जाता,
अंगूठा चूसू बस और
कुछ भी नहीं आता,
छोड़ो हँसना अभी तो मैं
रो भी नहीं पाता,
माँ आँखे खोलू तो
जी मेरा घबराता|
तेरी गोदी में सीखूंगा
मैं खिलखिलाकर हँसना,
ऊँगली तेरी पकड़ कर
एक दिन है चलना,
माँ मुझ पे कभी भी
नाराज ना होना,
गिर भी जाऊ
तो सिखाना संभलना|
अपनी आँचल में मुझको
छुपाये रखना,
सर अपना मेरे माथे पे
टिकाये रखना,
दुनिया की निगाहों से
बचाए रखना,
माँ मुझको कलेजे से
लगाये रखना|
मेरे बालों में उंगलिया
फिराते रहना,
मेरे चेहरे को हाथों से
थपथपाते रहना,
मेरी आँखों पे चुम्बन
लुटाते रहना,
गालों से गालों को
सटाये रखना|
माँ मुझको आँचल में
छुपाये रखना|
माँ मुझको कलेजे से
लगाये रखना||
- अमिताभ रंजन झा
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आंतकवादी की माँ
हाड़ मांस का पुतला
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Thursday, July 29, 2010
हबीब या रक़ीब
एक सुनसान से कब्रिस्तान में
किसी सुन्दर से पत्थर तले
खुबसूरत कफ़न में दफ़न
करता जाता है कोई परेशान इन्सान
एक एक जज्बात और नाकामयाबी को|
जिसे देख कर हैरान मैं नादान|
वो हबीब है या रक़ीब
मैं नहीं जनता पर ये हूँ मानता
कि ज़िंदा रहने और
आगे बढ़ने के लिए
ये क़दम जरुरी हैं यारों||
- अमिताभ रंजन झा
किसी सुन्दर से पत्थर तले
खुबसूरत कफ़न में दफ़न
करता जाता है कोई परेशान इन्सान
एक एक जज्बात और नाकामयाबी को|
जिसे देख कर हैरान मैं नादान|
वो हबीब है या रक़ीब
मैं नहीं जनता पर ये हूँ मानता
कि ज़िंदा रहने और
आगे बढ़ने के लिए
ये क़दम जरुरी हैं यारों||
- अमिताभ रंजन झा
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पागल मन
ख्वाबों में जो बसी हुयी हैं
नजरें उनको ढून्ढ रही हैं|
पागल मन कर रहा इशारे
शायद वो यही कही हैं||
कानो में पायल छनक रहे है
फिजाओं में महक वही है|
मौसम भी कर रहा इशारे
दिल में भी कसक वही है||
आँखों में छाए वो ही वो
सोने सी चमक रही हैं|
होठों पे मासूम हंसी है
असमान से उतर रही हैं||
पागल मन कर रहा इशारे
शायद वो यही कही हैं|
- अमिताभ रंजन झा
नजरें उनको ढून्ढ रही हैं|
पागल मन कर रहा इशारे
शायद वो यही कही हैं||
कानो में पायल छनक रहे है
फिजाओं में महक वही है|
मौसम भी कर रहा इशारे
दिल में भी कसक वही है||
आँखों में छाए वो ही वो
सोने सी चमक रही हैं|
होठों पे मासूम हंसी है
असमान से उतर रही हैं||
पागल मन कर रहा इशारे
शायद वो यही कही हैं|
- अमिताभ रंजन झा
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Saturday, July 24, 2010
हँसते हँसते कट जाए रस्ते
*************************
मैंने पुछा क्या हाल
उसने कहा बस चल रहा|
मैंने पुछा किस रुट पर
सारे दांत मेरे गिरे टूट कर||
*************************
विदेश आने से पहले
लोग सही बात नहीं बताते|
कुछ पता हो न हो
अफवाह जरुर फैलाते||
उधर आटा नहीं मिलेगा
ऐसा लोगो ने बताया|
तो मेरे एक साथी ने
दस किलो आटा ढो के लाया||
बीवी नहीं मिलेगी
ऐसा मुझे लोगो ने बताया|
सो मै पचहत्तर किलो
साथ ले के आया||
*************************
- अमिताभ रंजन झा
मैंने पुछा क्या हाल
उसने कहा बस चल रहा|
मैंने पुछा किस रुट पर
सारे दांत मेरे गिरे टूट कर||
*************************
विदेश आने से पहले
लोग सही बात नहीं बताते|
कुछ पता हो न हो
अफवाह जरुर फैलाते||
उधर आटा नहीं मिलेगा
ऐसा लोगो ने बताया|
तो मेरे एक साथी ने
दस किलो आटा ढो के लाया||
बीवी नहीं मिलेगी
ऐसा मुझे लोगो ने बताया|
सो मै पचहत्तर किलो
साथ ले के आया||
*************************
- अमिताभ रंजन झा
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Friday, July 23, 2010
भारतवर्ष की संतान
भारतवर्ष की संतान
भारतवर्ष की है संतान,
ये बात कभी तू भूले न|
ऐसे करना काम महान,
मन ख़ुशी से फूल समाये न||
एक मुख बस, आंख कान दो,
दस उंगलिया दिए विधाता ने|
बोल देख सुन थोड़ा, कर ज्यादा काम,
व्यर्थ समय कभी गंवाए न||
किसी हाल में कोई बुराई
तुझको कभी बहकाए न|
मुस्कान, स्वाभिमान तो रखना,
अभिमान कभी छू पाए न||
जीवनपथ में भेड़िये मिलेंगे,
सिर्फ मिलेंगे भेड़ ही न|
संयम से तू संग चले,
और कभी घबराये न||
अटल विश्वास से सब संभव,
असंभव तुझे झुकाए न|
साहस धीरज से रहना,
रोड़े कदम रोक पाए न||
तू जाये उस पथ भी,
जहा भय से कोई जाये न|
आगे बढ़ते जाना तू,
क्या हुआ संग कोई आये न||
जब तक न मंजिल हासिल हो,
न रुके तू और सोये न|
मुश्किल हो तो खूब लड़े,
न थके तू और रोये न||
एक मुकाम हो जब हासिल
आलस से सुस्ताये न|
कामयाबी पर जश्न हो बेशक
पर प्यास कभी बुझ पाए न||
सूरज, चाँद, सितारे भी
चमक तेरी घटाए न|
ब्रह्माण्ड सदा याद रखे,
इतिहास कभी भुलाये न||
- अमिताभ रंजन झा
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Sunday, June 27, 2010
गंगा के दो किनारे
आपने दिल तोड़ दिया
हमसे मुंह मोड़ लिया
हमको अकेला छोड़ दिया
हम छोड़ ना पाए|
खुशियों के मौसम बीते
अब यादों के मौसम आये
मन में ऐसे टीस जगाए
हमको हर पल तड़पाऐ|
गंगा से ली गीली मिट्टी
प्यार का डाला बालू गिट्टी
बाते की कुछ मीठी खट्टी
रेत पे हमने घर भी बनाये|
इंतजार में तेरे हमने
कितने पत्थर नदी में डाले
कितने पंखुरी फूलों से निकाले
हम गिन न पाए|
बाँहों में तुझको लेके
जुल्फों के साये में सोके
झील सी आँखों में खोके
हरदिन सूरज हमने डुबाये|
गोद में तेरे सर रखकर
ओस में कितनी राते काटी
चंदा से की जी भर बातें
तारो से भी नैन मिलाये|
सतरंगा अपना शहर हो
नदी किनारे छोटा घर हो
सारे जगकी ख़ुशी मगर हो
मीठे सपने हमने सजाये|
टूट गए वो सारे सपने
हमें रुलाया सारे जगने
हुए पराये अब तो अपने
अब भी हम जाग न पाए|
देखू तुझे दिल करे इशारे
मन ही मन तुझे पुकारे
पर गंगा के हम दो किनारे
सामने हैं पर मिल न पाए|
आपने दिल तोड़ दिया
हमसे मुंह मोड़ लिया
हमको अकेला छोड़ दिया
हम छोड़ ना पाए|
छोड़ ना पाए|
- अमिताभ रंजन झा
http://amitabh-jha.blogspot.com/search/label/Poems
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Sunday, May 16, 2010
नहर
नहर
बिहार नेपाल सीमा पर
नहर की है दरकार|
हुए साठ साल आजादी के
और कितना इन्तजार?
बाढ़ पे हो पाबन्दी
और बिजली की बहार|
नहर लाए समृधि
हो सपने साकार||
मै चीखू-चिल्लाऊ
करू विनती हजार|
अकेले मरी आवाज को
सुने कौन सरकार?
दस लाख हम जब मिले
और करे पुकार|
कैसे न सुनेगी
बहरी से बहरी सरकार||
- अमिताभ रंजन झा
Appeal
A 356 KM long canal at Bihar(India)-Nepal border in Bihar can provide permanent solution to regular floods. Control on flood will increase agricultural production. Abundant electricity will lead to Industrial revival.
Please join us to become 1 million and then we demand together!
@ facebook: Bihar Revival Forum
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नहर की है दरकार|
हुए साठ साल आजादी के
और कितना इन्तजार?
बाढ़ पे हो पाबन्दी
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नहर लाए समृधि
हो सपने साकार||
मै चीखू-चिल्लाऊ
करू विनती हजार|
अकेले मरी आवाज को
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दस लाख हम जब मिले
और करे पुकार|
कैसे न सुनेगी
बहरी से बहरी सरकार||
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Saturday, April 24, 2010
Lori
निनिया रानी आ जा
ऐशू को सुला जा|
ऐशू मेरी गुड़िया
रंग बिरंगी चिड़िया||
चंदा मामा आ जा
बौवा को सुला जा|
बौवा मेरी बढ़िया
जादू की पुड़िया||
टिमटिम तारा आ जा
छोटी को सुला जा|
छोटी मेरी प्यारी
पापा की दुलारी||
परी रानी आ जा
बेटी को सुला जा|
बेटी मेरी अच्छी
छोटी सी बच्ची||
आ रे निनिया आ
बौवा को सुला|
आ रे चंदा आ
ऐशू को सुला|
आ रे तारा आ
बच्ची को सुला|
आ रे परी आ
बेटी के सुला|
आ रे चंदा आ
ऐशू को सुला|
- अमिताभ रंजन झा
ऐशू को सुला जा|
ऐशू मेरी गुड़िया
रंग बिरंगी चिड़िया||
चंदा मामा आ जा
बौवा को सुला जा|
बौवा मेरी बढ़िया
जादू की पुड़िया||
टिमटिम तारा आ जा
छोटी को सुला जा|
छोटी मेरी प्यारी
पापा की दुलारी||
परी रानी आ जा
बेटी को सुला जा|
बेटी मेरी अच्छी
छोटी सी बच्ची||
आ रे निनिया आ
बौवा को सुला|
आ रे चंदा आ
ऐशू को सुला|
आ रे तारा आ
बच्ची को सुला|
आ रे परी आ
बेटी के सुला|
आ रे चंदा आ
ऐशू को सुला|
- अमिताभ रंजन झा
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Sunday, March 14, 2010
फिर याद आया कोई
फिर याद आया कोई
हुयी आँखें फिर से नम|
फिर दिल में वही टीस
उठी फिर से वही चुभन||
अक्सर मैं सोचता हूँ
हाय कैसे मेरे करम|
या खुदा तू जवाब दे
क्यों ढाया ये सितम||
यूँ तो छोर मैं चला
वो गलियां वो वतन|
लेकिन ये यकीं है
वो याद आयेंगे हरदम||
फिर आँखों में दिख रहे
वो पल साथ थे जो हम|
यूँ संग तो वो नहीं
पर चाहत ना हुयी कम||
फिर याद आया कोई
हुयी आँखें फिर से नम|
फिर दिल में वही टीस
उठी फिर से वही चुभन||
- अमिताभ रंजन झा
हुयी आँखें फिर से नम|
फिर दिल में वही टीस
उठी फिर से वही चुभन||
अक्सर मैं सोचता हूँ
हाय कैसे मेरे करम|
या खुदा तू जवाब दे
क्यों ढाया ये सितम||
यूँ तो छोर मैं चला
वो गलियां वो वतन|
लेकिन ये यकीं है
वो याद आयेंगे हरदम||
फिर आँखों में दिख रहे
वो पल साथ थे जो हम|
यूँ संग तो वो नहीं
पर चाहत ना हुयी कम||
फिर याद आया कोई
हुयी आँखें फिर से नम|
फिर दिल में वही टीस
उठी फिर से वही चुभन||
- अमिताभ रंजन झा
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Wednesday, February 3, 2010
निगाहों पे निगाहें
भीड़ से भरे बाज़ार में
निगाहों को पढ़ती मेरी निगाहें
निगाहों को ढूंढती निगाहें
निगाहों से टकराती निगाहें
निगाहों से शर्माती निगाहें
निगाहों से कतराती निगाहें
निगाहों को घूरती निगाहें
निगाहों से डरती निगाहें
निगाहों से सहमती निगाहें
निगाहों से घबराती निगाहें
निगाहों को समझाती निगाहें
निगाहों से बतियाती निगाहें
निगाहों से सहमत निगाहें
निगाहों से परेशान निगाहें
निगाहों में खोयी निगाहें
निगाहों को चूमती निगाहें
निगाहों को पूजती निगाहें
निगाहों को साराहती निगाहें
निगाहों से छुपती निगाहें
निगाहों से चिढ़ती निगाहें
निगाहों पे इतराती निगाहें
निगाहों को सुलाती निगाहें
फिर एक नेत्रहीन को देख
हुयी नम मेरी निगाहें
हुयी नम मेरी निगाहें
नेत्रदान महादान!
- अमिताभ रंजन झा
निगाहों को पढ़ती मेरी निगाहें
निगाहों को ढूंढती निगाहें
निगाहों से टकराती निगाहें
निगाहों से शर्माती निगाहें
निगाहों से कतराती निगाहें
निगाहों को घूरती निगाहें
निगाहों से डरती निगाहें
निगाहों से सहमती निगाहें
निगाहों से घबराती निगाहें
निगाहों को समझाती निगाहें
निगाहों से बतियाती निगाहें
निगाहों से सहमत निगाहें
निगाहों से परेशान निगाहें
निगाहों में खोयी निगाहें
निगाहों को चूमती निगाहें
निगाहों को पूजती निगाहें
निगाहों को साराहती निगाहें
निगाहों से छुपती निगाहें
निगाहों से चिढ़ती निगाहें
निगाहों पे इतराती निगाहें
निगाहों को सुलाती निगाहें
फिर एक नेत्रहीन को देख
हुयी नम मेरी निगाहें
हुयी नम मेरी निगाहें
नेत्रदान महादान!
- अमिताभ रंजन झा
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